Jo Bhi Nabi Ke Ishq Me

Zainul Abedin

जो भी नबी के इश्क के सांचे में ढल गया
उसका कसम खुदा की मुकद्दर बदल गया

मेरे रसूले पाक के तलवों को चूम कर
पत्थर जमी पर मोम की सूरत पिघल गया

मुश्किल में पड़ गई है मेरी मुश्किलें सभी
मुश्किल कुशा का नाम जो मुंह से निकल गया

जन्नत में उसको देखकर हूं रे मचल गई
चेहरे पर अपने खाके मदीना जो मल गया

मैंने तो सिर्फ मसलक अहमद रजा कहा
सुनकर वहाबियत का जनाजा निकल गया

सज्जाद की जबान से नाते रसूल को
सुनकर नबी का चाहने वाला मचल गया

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