निर्गुन रंगी चादरिया रे, कोई ओढे संत सुजान
कोई कोई बिरला जतन करावे
या कोई चुनरी पिय के मन भावे
कितने ओढ़ भए बैरागी, भए कई मस्तान ।
नाम की तार से बुनी चदरिया
प्रेम भक्ती से रंगी चदरिया
सतगुरु कृपा करे सो पावै, चहुवन मोलक ग्यान ।
पोथी पढ़ी पढ़ी नैन गँवाए
सतगुरु नाथ शरण नही आवे
हरी नारायण निर्गुुण सगुण, सबही में पहचान ।
Lyrics Submitted by Sitaram Parik
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