श्री राम लखन ले व्याकुल मन कुटिया में लौट जब आए
नहीं पाई सिया अकुलाए नैन भर लाए
सूनापन इतना गहरा था श्री राम का जी घबराया
सारे पिंजरे थे खुले एक पंछी भी नजर ना आया
थे धूल धूल कलियां औ फूल थे पात पात मुरझाए
सीता के कुछ आभूषण पथ पर इधर उधर बिखरे थे
अन्याय और दुःख भरी सिया की करुण कथा कहते थे
शोभा श्रृंगार इक चंद्रहार देखा तो राम अकुलाए
आंसू का सागर उमड़ पड़ा सुध-बुध भूले रघुनंदन
ये हार मेरी सीता का न हो पहचानो सुमित्रानंदन
तब चरण पकड़ सिसकी भर भर लक्ष्मण ने भेद बताए
कैसे बतलाऊं क्षमा करो भैया ये हार अदेखा
मैंने जब भी देखा भाभी के चरणों को ही देखा
वे लाल वरण भाभी के चरण मेरे तीर्थ धाम कहलाए
Lyrics Submitted by MANOJ KUMAR JHA
Enjoy the lyrics !!!