सुर वही साज़ों पे चलती हुई आवाज़ वही
हाँ वही रंग है मेहकी हुई खुसबू भी वही
अब भी साखो पे वही सब्नमी कतरे कतरे
अब भी चलती है सबाब पत्तों पे पाऊँ रख कर
जुक कर पानी में ताका करती है चेहरा लेकिन
एक शुबह और भी है
तेरी आवाज़ से लिपटी हुई खामोशी का सुर
Lyrics Submitted by Aditi kumari
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